समाजबंधुओं की तरक्की, सामाजिक सुरक्षा और 🔅मोयला🔅 समाज की संस्कृति की रक्षा के खातिर...

*समाजबंधुओं की तरक्की, सामाजिक सुरक्षा और 🔅मोयला🔅 समाज की संस्कृति की रक्षा के खातिर...*

*मोयला समाजबंधू शिक्षा रूप से अन्य कई समाजों के मुकाबले निर्धन(शिक्षा की दृष्टि से)  है  दानी है, बुद्धिमान है, चरित्रसम्पन्न है, सुस्वभावी है, मिलनसार है, ईमानदार है,  मेहनती है फिर भी समाज दिन-ब-दिन पिछड़ता जा रहा है, अपनी पहचान को, अपने गौरव को खोता जा रहा है... क्यों??? क्योंकि एकता का अभाव है । समाज में एकता की कमी है । एकता से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है । एकता ही समाजोत्थान का आधार है । जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकता किन्तु जहाँ एकता नहीं है वह समाज ना प्रगति कर सकता है, ना समृद्धि पा सकता है और ना अपने सम्मान को, अपने गौरव को कायम रख सकता है। मोयला समाज इसका जीता-जागता उदाहरण है । हम समाजबंधु एकसाथ रहते तो है लेकिन क्या हम उन्नत्ति-प्रगति के लिए एक-दूजे का साथ देते है? नहीं ; तो सिर्फ एकसाथ रहने का कोई मतलब नहीं । एकसाथ इस शब्द को कोई अर्थ तभी है जब हम एकसाथ रहे भी और एक-दूजे का साथ दे भी । ऐसी एकता को ही सही मायने में 'एकता' (Unity) कहा जाता है* ।


*समाज में एकता को कायम रखने के लिए समाजशास्त्रियों ने 'ट्रस्ट नामक एक व्यवस्था सूचित की और हर एक समाज ने इस व्यवस्था के महत्त्व को समझते हुए इसे अपनाया । मोयला समाज की समाजबंधुओं में अपने धर्म या जाती के प्रति एक अस्मिता को, स्व-अस्मिता को, गर्व की अनुभूति को जागृत रखें । अपनी संस्कृति को समाजबंधुओं के जीवनशैली का एक अंग बनाकर अपनी संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करें । समाज की एकता के लिए यही सबसे पहली जरुरत है, पहली शर्त है । किसी मराठा को, राजपूत को, सिख को, अग्रवाल को, जैन को देखिये उन्हें अपने मराठा, राजपूत, सिख, अग्रवाल, जैन होने पर गर्व होता है । अस्मिता और संस्कृति का यही मजबूत धागा समाज को एकता के सूत्र में बांधे रखता है । क्या आज मोयला में अपने "मोयला होने के प्रति वह अस्मिता, वह गर्व की अनुभूति जागृत है? मोयला संस्कृति के आन-बाण-शान के लिए, संरक्षण-संवर्धन के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाने का जज्बा बचा है? क्या समाज के युवाओं को अपने "मोयला" होने पर नाज होता है? गर्व अनुभव होता है? यदि नहीं तो यह बात पत्थर की लकीर है की समाज में, समाज के नाम पर एकता बन ही नहीं सकती और ना ही संगठन बन सकता है । बिना इस स्व-अस्मिता के समाज का संगठन बन ही नहीं सकता और जैसे तैसे बन भी जाये या बना भी ले तो ना उस संगठन का समाज पर कोई प्रभाव रहता है और ना ही समाज के लोगों को संगठन से कोई लगाव रहता है । संगठन मात्र एक औपचारिकता भर बनके रह जाता है । ऐसी स्थिति में कोई नेतृत्व, कोई संगठन समाज में एकता कायम नहीं कर सकता । एकता के लिए "स्व-अस्मिता" यही बुनियादी जरुरत है । जैसे विवाह के लिए बुनियादी जरुरत होती है- एक विवाहयोग्य लड़के की और लड़की की । बाकि सब जरूरतें... रिश्तेदार, यार-दोस्त, बाराती,  विवाह के अन्य इंतजाम आदि सब बाद की बात है*।

*आज हम समाजबंधुओं खासकर युवाओं से 'मोयला संस्कृति' के बारे में उनकी जानकारी जानना चाहे तो वो कुछ बता नहीं पाते है । कई समाजबंधुओं से व्यक्तिगत बातचीत में जब हमने कहा की, चलो... मोयला संस्कृति/कल्चर के बारे में कोई ऐसी बात बताएं जिसे की समाज के सभी लोग कहे की हां, इस बात पर हम सभी एकमत है । ऐसा नहीं है की मोयला समाज की कोई संस्कृति ही नहीं रही है या जीवनशैली में, दिनचर्या में उनका समावेश ही नहीं रहा है । किसी नामविशेष से कोई समाज होता है, जैसे की- जैन, अग्रवाल, राजपूत आदि ; तो उस समाज की अपनी संस्कृति भी होती ही है । बिना किसी संस्कृति के, बिना किसी ऐसी समान बातों या चीजों के जो की उस समाज के सभी लोग एकसमान रूप से करते है कोई समाज निर्माण ही नहीं होता, बन ही नहीं सकता*।

*दुख के साथ कहना पड रहा है की समाज के एकता के लिए आवश्यक यह कार्य कोई महीने दो महीने का अभियान नहीं होता है बल्कि ऐसे एक व्यवस्था के रूप में कार्य करता है जो एक प्रक्रिया की तरह निरंतर चलता रहता है । समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए, समाजबंधुओं की आर्थिक प्रगति हो जिससे की समाज समृद्ध हो इसलिए समाज में एकता होना जरुरी है और समाज में एकता के लिए ऐसी एक स्थाई व्यवस्था का र्निर्माण जरुरी हो गया है*।

*समाज के संगठन का दूसरा मुख्य काम होता है की समाजबंधुओं के आर्थिक प्रगति के लिए संगठन सहयोगी के रूप में कार्य करें । इस कार्य हेतु उचित मार्गदर्शन समय-समयपर करता तो रहे ही बल्कि जहाँ आवश्यक हो वहां हर तरह से सहयोग भी करें । केवल इतना ही नही करनेका, समाजबंधुओं को एवं माता-बहनों को सामाजिक सुरक्षा और व्यवस्था करें । इसलिए अब यह जरुरी है की एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जाये जिसमें संगठन समाजबंधुओं के काम आ सके । समाजबंधुओं के विकास में, उन्नत्ति में अपना योगदान दे सकें* ।

*उपरोक्त बातों के अतिरिक्त और भी कई महत्वपूर्ण बातें है जिसे करने की आवश्यकता है (फिर आगे कभी इसपर समाजबंधुओं के साथ जरूर बात करेंगे) । इन सभी बातों पर समाज के प्रबुद्ध समाजबंधुओं ने दो-ढाई वर्ष गहन विचार-विमर्श किया । इस कार्य को क्रियान्वित करनेके उद्देश्य से ट्रस्ट  के रूप में “abmsss की स्थापना की गई । abmss की स्थापना मोयला समाज के लिए कार्य करनेवाले ट्रस्ट के रूप में हुई है । देशभर में समाज के लिए कार्य करनेवाले अनेक संगठन बने हुए है, इन सभी संगठनों को एक मंच पर लाया जा सके, सभी में एक बेहतर समन्वय, संपर्क और सुसंवाद बनाकर समाजहित के कार्य व्यापक एवं परिणामकारक बनाये जा सकें इसलिए मोयला यह ट्रस्ट  "अखिल भारतीय मोयला समाज सेवा समिति के रूप में स्थापना की गई है।। abmsss ने इस प्रस्तावित व्यवस्था का एक प्रारूप, एक कृति कार्यक्रम बनाया है जिससे की अब तक की संगठनात्मक कमियों को दूर करते हुए समाजबंधुओं की आर्थिक विकास दर को तेज किया जा सकें, उनके आर्थिक हितों की रक्षा की जा सकें, उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा सकें और मोयला संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करते हुए समाज के गौरव को पुनर्स्थापित किया जा सकें । इस व्यवस्था को सुनियोजित रूप से क्रियान्वित करने के लिए एक चरणबद्ध कृतिकार्यक्रम बनाया है ।  जिसमें देश भर मे जहाँ-जहाँ मोयला परिवार बसें हुए है वहां-वहां जाकर समाजबंधुओं से एक संवादसेतु बनाया जायेगा । समाज के सभी संगठनों को साथ लाकर, सभी का साथ लेकर एक नई व्यवस्था एवं प्रबंधन के माध्यम से समाज के प्रति अपना दायित्व निभाने के प्रति अखिल भारतीय मोयला समाज सेवा समिति(ABMSSS) संकल्पबद्ध है* ।
*🙏 माफी चाहता  हूं लिखने में कोई गलती होगी(जानकारी के अभाव में) हो तो मुझे मोयला समाज का बच्चा  होने के नातें माफ कर देना*
आपका अपना
*नसीर खान j*
मिनजानिब *अखिल भारतीय मोयला समाज सेवा सीमिति(abmsss)*

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About: अखिल भारतीय मोयला समाज सेवा समिति ट्रस्ट

समाजसेवियो की कलम से:- शुक्रिया मोयला समाज।। ट्रस्ट ने रचा इतिहास।।