यदि आपकी समाज शिक्षित होगी तो आप कोई भी बदलाव क्षण भर में कर सकते है। अन्यथा ?..

 शिक्षा समाज के व्यक्तियों को इस योग्य बनाती है कि वह समाज में व्याप्त समस्याओं, कुरीतियों गलत परम्पराओं के प्रति सचेत होकर उसकी आलोचना करते है, और धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन हेाता जाता है। शिक्षा समाज के प्रति लेागों को जागरूक बनाते हुये उसमें प्रगति का आधार बनाती है। जैसे शिक्षा पूर्व में वर्ग विशेष का अधिकार थी जिससे कि समाज का रूप व स्तर अलग तरीके का या अत्यधिक धार्मिक कट्टरता, रूढिवादिता एवं भेदभाव या कालान्तर में शिक्षा समाज के सभी वर्गों के लिये अनिवार्य बनी जिससे कि स्वतंत्रता के पश्चात् सामाजिक प्रगति एवं सुधार स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। डयूवी ने लिखा है कि- शिक्षा में अनिश्चितता और अल्पतम साधनों द्वारा सामाजिक और संस्थागत उद्देश्यों के साथ-साथ, समाज के कल्याण, प्रगति और सुधार में रूचि का दूषित होना पाया जाता है।


. शिक्षा और सामाजिक नियंत्रण -
शिक्षा समाज का स्वरूप बदलकर उस पर नियंत्रण भी करती है अभिप्राय यह है कि व्यक्ति का दृष्टिकोण एवं उसके क्रियाकलाप समाज को गतिशील रखते हैं। शिक्षा व्यक्ति के दृष्टिकोण में परिवर्तन कर उसके क्रियाकलापों में परिवर्तन कर समूह मन का निर्माण करती है और इससे अत्यव्यवस्था दूर कर उपयुक्त सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करती है।
शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन -
समाज की रचना मनुष्य ने की है, और समाज का आधार मानव क्रिया है ये- अन्त: क्रिया सदैव चलती रहेगी और शिक्षा की क्रिया के अन्तर्गत होती है इसीलिये शिक्षा व्यवस्था जहां समाज से प्रभावित हेाती है वहीं समाज को परिवर्तित भी करती है जैसे कि स्वतंत्रता के पश्चात् सबके लिये शिक्षा एवं समानता के लिये शिक्षा हमारे मुख्य लक्ष्य रहे हैं इससे शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ और समाज का पुराना ढांचा परिवर्तन होने लगा। आध्यात्मिक मूल्यों के स्थान पर भौतिक मूल्य अधिक लोकप्रिय हुआ। सादा जीवन उच्च विचार से अब हर वर्ग अपनी इच्छाओं के अनुरूप जीना चाहता है। शिक्षा ने जातिगत व लैंगिक असमानता को काफी हद तक दूर करने काप्रयास किया। और ग्रामीण समाज अब शहरी समाजों में बदलने लगे और सामूहिक परिवारों का चलन कम हो रहा है। शिक्षा के द्वारा सामाजिक परिवर्तन और इसके द्वारा शिक्षा पर प्रभाव दोनों ही तथ्य अपने स्थान पर स्पष्ट है।
 आज नए संदर्भ में शिक्षा और समाज के पारस्परिक संबंधों को देखने की आवश्यकता है। प्राचीन काल में जो समाज व्यवस्था थी वह आज नहीं है। विज्ञान युग के व्यापक प्रसार से दूर-दराज के देश नजदीक आ गए हैं। समाज व्यापक बनता जा रहा है और इसी व्यापक समाज की दृष्टि से शिक्षा का विचार करना चाहिए। शिक्षण अपने-आप में एक विस्तृत संसार है और उसे इस संसार का प्रतिबिंब भी कहा जा सकता है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते समय वह समाजाधीन रहता है और समाज के निर्माण स्थलों में शीघ्रता लाने की दृष्टि से शिक्षा समाज की सहायता करती है। समाज की व्यापक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा को उसकी सहायता करनी पड़ती है। विज्ञान युग में नए भविष्य निर्माण के लिए शिक्षा को विविध दृष्टिकोणों से परिवर्तित करते हुए सावधानी से काम लेना चाहिए। वर्तमान शिक्षा प्रणाली से मात्र सीमित कल्याण की कल्पना की जा सकती है। यथार्थ यह है कि नए वैज्ञानिक युग के संदर्भ में कृषि को लक्ष्य बनाकर शिक्षा में समूल परिवर्तन करते हुए समाजाभिमुख बनाई जाए। विज्ञान युग समाजहित से विमुख हो रहा है। अतः "शिक्षा को उत्तरजीविता, समता और स्वायत्तता की समस्याओं के समाधान में अपने को लगाना होगा, क्योंकि यहीं तीन आज के मानव की सबसे अधिक आवश्यक समस्याएं हैं। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षा की वर्तमान संरचना को बदलकर ऐसी वैकल्पिक समांतर रचना विकसित करनी होगी, जिसके साथ समान स्वीकृति, प्रतिफल ओर वैधता जुडी हो।"4 विश्व समाज के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना के लिए सर्वस्वीकृत, उचित और सबको फलदायी शिक्षा नीति की आवश्यकता भविष्यकालीन मोयला  समाज की मांग रही है।
*मुझे गर्व है कि मैं एक  मोयला हुं*
क्या आपको भी गर्व मोयला होने का तो आज ही मोयला समाज के विकास हेतु शिक्षा हासिल करें व करावें जिससे समाज का गौरव बढ़ सकें।
शुक्रिया
         नसीर खान j
*The all india moyla society service trust(abmsss)*
मिनजानिब अखिल भारतीय मोयला समाज सेवा समिति ट्रस्ट

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिस कॉम का टूटा फूटा इतिहास होता है वो कॉम खत्म हो जाती है

About: अखिल भारतीय मोयला समाज सेवा समिति ट्रस्ट

समाजसेवियो की कलम से:- शुक्रिया मोयला समाज।। ट्रस्ट ने रचा इतिहास।।