आइये बेहतरीन भविष्य के लिए आज से शिक्षा का दामन थामें।abmsss
. तहरीर
#मैं_मुसलमान_हूँ
(नोट-मै चाहता हूँ हर एक मुस्लिम इस तहरीर को अपनी वाल पर लगाए, इस्लाह के लिए)
मै मुसलमान हूँ, मै प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री,एमपी, एमएलए नही बन सकता, क्योकि मेरी तादाद कम है और जातिवाद ज्यादा, लेकिन मैं कलेक्टर, एडीएम, तहसीलदार, कमिश्नर, एसपी, डीएसपी तो बन ही सकता
लेकिन मै निकम्मा हूं, मुझे नेता नगरिया जैसा सीधा- सीधा खाने को चाहिए, जिसमे दो-चार आस-पास भाई-भाई करते हुए मेरे इर्द-गिर्द घूमे।
मुझ से घंटो पढ़ाई नही होती, अगर मैं पढ़ने लग गया तो चौराहों की रोनके ख़त्म हो जाएगी, जो की मै होने नही दूंगा, मै पढ़ गया तो गुटखा, पाउच, शराब, चरस गांजा, तास पत्तियां छूट जाएगी जो की मै छोड़ना नही चाहता।
मै पढ़ गया तो मोहोल्ले की रोनक कम हो जाएगी, दिन भर आवारा गिर्दी इन्ही मोहोल्ले में ही तो करता हूँ मै, हां! काम नही है मेरे पास, लेकिन क्या फ़र्क़ पढता है, अल्लाह दो वक़्त की रोटी तो खिला ही देता हेना!
हां मै मुसलमान हूँ, और पैदा होते है एक सील ठप्पा लग गया था मेरी तशरीफ़ पर की मै पंचर की दूकान खोलूंगा या हाथो में पाने पकड़ कर गाड़िया सुधारूँगा, या बहुत ज्यादा हुआ तो दूसरों की गाड़ियां चलाऊंगा।
हां मै मुसलमान हूँ, नेताओ की चमचागिरी, अपने भाइयो की टांग खिंचाई, मेरा अहम सगल है।
आखिर मै क्यों नही पड़ा? या मै क्यों नही पढ़ नही पाया? ये सवाल हो सकता है! लेकिन मैं अनपढ़ हूं इसमें शक नही!
हां मै मुसलमान हूं,और हिंदुस्तान में 20 करोड़ हुँ , लेकिन मै ज्यादातर अनपढ़, गरीब, गन्दी बस्तियों में ही हूं, इसका दोष मै दुसरो पर मंढता हूं, मै चाहता हूँ की मेरे घर आंगन की झाड़ू लगाने भी सरकार आये।
मै मुसलमान हूं, घर के सामने अतिक्रमण करना भी मेरा अहम सगल है, मै पंद्रह फिट की रोड को आठ फिट की करने मै भी माहिर हुँ, फिर उस आठ फिट की रोड़ पर रिक्शा खड़ी करना भी मेरा अधिकार है, हां मै मुसलमान हूँ, जिसका धर्म 'पाकी आधा ईमान', 'तालीम अहम बुनियाद है' मानने वाला है लेकिन मै इस पर कभी अमल नही करता।
मै हमेशा सउदी अरब दुबई जैसे देशों की दुहाई देकर अपनी बढ़ाइयां करता हूँ, लेकिन मैने हिंदस्तान मै खुद पर कभी कोई सुधार नही किया, न मै सुधरना चाहता हूँ।
हां मै मुसलमान हूं, मै अनपढ़ हूँ, क्यों की माँ-बाप ने बचपन से गैरेज पर नोकरी से लगाया और मै गरीब घर से हुँ।
बेहतर तालीम देने के लिए माँ-बाप के पास रुपया नही है, और मेरी कौम तालीम से ज्यादा लंगर को तवज्जोह देती है, वो खिलाने मात्र को सवाब समझती है।
मै मुसलमान हूं, मै खूब गालियां देता हूं, मै रिक्शा चलाता हूं, मै गैरेज पर गाड़िया सुधारता हु, मै चौराहे पर बैठ कर सिगरेट पीता हूं,गांजा पिता हूं, ताश पत्ते खेलता हूं, क्यों की मै अनपढ़ हूं, और मै अनपढ़ सिर्फ दो वजह से हूं, एक–माँ-बाप की लापरवाही, दूसरा –कौम की लापरवाही।
माँ-बाप मजबूर थे, लेकिन मेरी कौम मजबूर न थी, न है! मैने आंखो से देखा है लाखो रुपयों के लंगर कराते हुए, मैने आँखों से देखा है लाखों रुपए कव्वाली पर उड़ाते हुए, मैने आँखों से देखा है बेइंतहा फ़िज़ूल खर्च करते हुए।
काश! मेरे माँ-बाप या मेरी कौम मेरी तालीम की फ़िक़्र मंद होती तो आज मै प्रधान मंत्री या मंत्री न सही, लेकिन मैं आज क्लेक्टर, एडीएम,कमिश्नर जैसे बड़े पदों पर होता, बिना वोट पाये भी लाल बत्ती में होता, या कम से कम मै डॉक्टर,इंजिनियर,आर्किटेक्चर,या एक अच्छा बिजनेस मैन तो होता ही, लेकिन बचपन से मन में एक वहम घर कर गया है, "की मियां तुम मुसलमान हो और मुसलमानो को यहाँ नोकरी आसानी से नही मिलती" लेकिन में ये तो भूल ही गया कि मेरे नबी ने तमाम जिंदगी तिजारत ही की और तालीम पर अहम् जोर दिया, फिर मै उनका उम्मती होकर नोकरी न मिलने की बात सोच कर तालीमात क्यों हासिल नही करता?
(नोट- दोस्तों ये तहरीर सिर्फ इस्लाही पोस्ट के लिए लिखी गयी है, रिक्शा चला कर पेट पालना या गैरेज के पाने उठाना या मजदूरी करना कोई गलत काम नही, लेकिन हम इसके लिए पैदा हुए है ये सोच कर तालीम हासिल न करना गलत है, खूब पढ़ाई करो, की हर पद पर सिर्फ तुम दिखो, तुम्हे इज्जत से देखे, तुम पढ़े लिखे तबके में गिने जाओ, अंधविश्वास से दूर एक नयी जिंदगी की और.....जहा प्रोपोगंडा नामक चीज ही न हो, आने वाली नस्लो को पड़ा लिखा कर हम अब तक के अपने इतिहास को बदल दे, यही एक ललक है कि ये कौम एक नया सवेरा देखे, की जब भी सुबह का अखबार देखे हर अखबार के फ्रंट पेज पर आये– #इस_शहर_के_नए_कलेक्टर__नए_एडीएम_नए_कमीशनर_तुम_हो_.......
आपका हितैषी
अखिल भारतीय मोयला समाज सेवा समिति ट्र्स्ट
#मैं_मुसलमान_हूँ
(नोट-मै चाहता हूँ हर एक मुस्लिम इस तहरीर को अपनी वाल पर लगाए, इस्लाह के लिए)
मै मुसलमान हूँ, मै प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री,एमपी, एमएलए नही बन सकता, क्योकि मेरी तादाद कम है और जातिवाद ज्यादा, लेकिन मैं कलेक्टर, एडीएम, तहसीलदार, कमिश्नर, एसपी, डीएसपी तो बन ही सकता
मुझ से घंटो पढ़ाई नही होती, अगर मैं पढ़ने लग गया तो चौराहों की रोनके ख़त्म हो जाएगी, जो की मै होने नही दूंगा, मै पढ़ गया तो गुटखा, पाउच, शराब, चरस गांजा, तास पत्तियां छूट जाएगी जो की मै छोड़ना नही चाहता।
मै पढ़ गया तो मोहोल्ले की रोनक कम हो जाएगी, दिन भर आवारा गिर्दी इन्ही मोहोल्ले में ही तो करता हूँ मै, हां! काम नही है मेरे पास, लेकिन क्या फ़र्क़ पढता है, अल्लाह दो वक़्त की रोटी तो खिला ही देता हेना!
हां मै मुसलमान हूँ, और पैदा होते है एक सील ठप्पा लग गया था मेरी तशरीफ़ पर की मै पंचर की दूकान खोलूंगा या हाथो में पाने पकड़ कर गाड़िया सुधारूँगा, या बहुत ज्यादा हुआ तो दूसरों की गाड़ियां चलाऊंगा।
हां मै मुसलमान हूँ, नेताओ की चमचागिरी, अपने भाइयो की टांग खिंचाई, मेरा अहम सगल है।
आखिर मै क्यों नही पड़ा? या मै क्यों नही पढ़ नही पाया? ये सवाल हो सकता है! लेकिन मैं अनपढ़ हूं इसमें शक नही!
हां मै मुसलमान हूं,और हिंदुस्तान में 20 करोड़ हुँ , लेकिन मै ज्यादातर अनपढ़, गरीब, गन्दी बस्तियों में ही हूं, इसका दोष मै दुसरो पर मंढता हूं, मै चाहता हूँ की मेरे घर आंगन की झाड़ू लगाने भी सरकार आये।
मै मुसलमान हूं, घर के सामने अतिक्रमण करना भी मेरा अहम सगल है, मै पंद्रह फिट की रोड को आठ फिट की करने मै भी माहिर हुँ, फिर उस आठ फिट की रोड़ पर रिक्शा खड़ी करना भी मेरा अधिकार है, हां मै मुसलमान हूँ, जिसका धर्म 'पाकी आधा ईमान', 'तालीम अहम बुनियाद है' मानने वाला है लेकिन मै इस पर कभी अमल नही करता।
मै हमेशा सउदी अरब दुबई जैसे देशों की दुहाई देकर अपनी बढ़ाइयां करता हूँ, लेकिन मैने हिंदस्तान मै खुद पर कभी कोई सुधार नही किया, न मै सुधरना चाहता हूँ।
हां मै मुसलमान हूं, मै अनपढ़ हूँ, क्यों की माँ-बाप ने बचपन से गैरेज पर नोकरी से लगाया और मै गरीब घर से हुँ।
बेहतर तालीम देने के लिए माँ-बाप के पास रुपया नही है, और मेरी कौम तालीम से ज्यादा लंगर को तवज्जोह देती है, वो खिलाने मात्र को सवाब समझती है।
मै मुसलमान हूं, मै खूब गालियां देता हूं, मै रिक्शा चलाता हूं, मै गैरेज पर गाड़िया सुधारता हु, मै चौराहे पर बैठ कर सिगरेट पीता हूं,गांजा पिता हूं, ताश पत्ते खेलता हूं, क्यों की मै अनपढ़ हूं, और मै अनपढ़ सिर्फ दो वजह से हूं, एक–माँ-बाप की लापरवाही, दूसरा –कौम की लापरवाही।
माँ-बाप मजबूर थे, लेकिन मेरी कौम मजबूर न थी, न है! मैने आंखो से देखा है लाखो रुपयों के लंगर कराते हुए, मैने आँखों से देखा है लाखों रुपए कव्वाली पर उड़ाते हुए, मैने आँखों से देखा है बेइंतहा फ़िज़ूल खर्च करते हुए।
काश! मेरे माँ-बाप या मेरी कौम मेरी तालीम की फ़िक़्र मंद होती तो आज मै प्रधान मंत्री या मंत्री न सही, लेकिन मैं आज क्लेक्टर, एडीएम,कमिश्नर जैसे बड़े पदों पर होता, बिना वोट पाये भी लाल बत्ती में होता, या कम से कम मै डॉक्टर,इंजिनियर,आर्किटेक्चर,या एक अच्छा बिजनेस मैन तो होता ही, लेकिन बचपन से मन में एक वहम घर कर गया है, "की मियां तुम मुसलमान हो और मुसलमानो को यहाँ नोकरी आसानी से नही मिलती" लेकिन में ये तो भूल ही गया कि मेरे नबी ने तमाम जिंदगी तिजारत ही की और तालीम पर अहम् जोर दिया, फिर मै उनका उम्मती होकर नोकरी न मिलने की बात सोच कर तालीमात क्यों हासिल नही करता?
(नोट- दोस्तों ये तहरीर सिर्फ इस्लाही पोस्ट के लिए लिखी गयी है, रिक्शा चला कर पेट पालना या गैरेज के पाने उठाना या मजदूरी करना कोई गलत काम नही, लेकिन हम इसके लिए पैदा हुए है ये सोच कर तालीम हासिल न करना गलत है, खूब पढ़ाई करो, की हर पद पर सिर्फ तुम दिखो, तुम्हे इज्जत से देखे, तुम पढ़े लिखे तबके में गिने जाओ, अंधविश्वास से दूर एक नयी जिंदगी की और.....जहा प्रोपोगंडा नामक चीज ही न हो, आने वाली नस्लो को पड़ा लिखा कर हम अब तक के अपने इतिहास को बदल दे, यही एक ललक है कि ये कौम एक नया सवेरा देखे, की जब भी सुबह का अखबार देखे हर अखबार के फ्रंट पेज पर आये– #इस_शहर_के_नए_कलेक्टर__नए_एडीएम_नए_कमीशनर_तुम_हो_.......
आपका हितैषी
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